निकाह का झांसा देकर दुष्कर्म का मामला: संदेह के लाभ में आरोपी बरी
बरेली। निकाह का झांसा देकर दुष्कर्म और दहेज की मांग करने के गंभीर आरोप में घिरे राहत हुसैन को अदालत ने संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। अपर सत्र न्यायाधीश (त्वरित न्यायालय) अशोक कुमार यादव की अदालत ने फैसला सुनाते हुए अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों को पर्याप्त नहीं माना।
पीड़िता ने 22 मार्च 2017 को थाना किला में तहरीर दी थी। उसने आरोप लगाया कि उसके माता-पिता का निधन हो चुका है, और वह आर्थिक रूप से कमजोर है। वर्ष 2015 में उसकी दादी की गले की हड्डी टूट गई थी, जिसके इलाज में भारी खर्च हुआ। इस दौरान वह एक निजी अस्पताल में मेडिकल संचालक राहत हुसैन के संपर्क में आई।
आरोप के अनुसार, राहत ने सस्ती दवाइयों का झांसा देकर उसे बहलाया और होटल में ले जाकर नशीला पदार्थ खिलाकर दुष्कर्म किया। इसके बाद निकाह का झांसा देकर लगातार शारीरिक शोषण करता रहा। बाद में आरोपी ने फर्जी निकाह कर 5 लाख रुपये दहेज की मांग की। जब पीड़िता ने विरोध किया, तो उसके साथ मारपीट और अपमानजनक व्यवहार किया गया।
अदालत ने क्यों किया बरी?
अदालत में सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष के वकील नंदकिशोर भगत ने दलील दी कि आरोपी को झूठे मामले में फंसाया गया है और अभियोजन पक्ष ठोस साक्ष्य पेश करने में असफल रहा। कोर्ट ने गवाहों और सबूतों की समीक्षा के बाद राहत हुसैन को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त कर दिया।
फैसले के मायने
इस मामले का फैसला एक बार फिर न्याय प्रक्रिया में साक्ष्यों की अहमियत को उजागर करता है। यदि आरोपों को साबित करने के लिए ठोस प्रमाण नहीं होते, तो संदेह का लाभ आरोपी को मिल सकता है। अदालत के इस फैसले के बाद मामले को लेकर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं।
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