बरेली में न्याय की तलाश में जान गंवा बैठा एक बेगुनाह
झूठे आरोप, पुलिस की प्रताड़ना और अंततः मौत—एक युवक की दर्दनाक कहानी
बरेली। समाज में इंसाफ की आस लेकर जीने वाले एक युवक की कहानी इतनी दर्दनाक होगी, यह किसी ने नहीं सोचा था। लखनपाल, जो रोजी-रोटी के लिए ऑटो चलाता था, उसे एक झूठे मामले में फंसा दिया गया। पुलिसिया प्रताड़ना और समाज के तानों से टूटकर उसने अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए अपनी ही जान ले ली।
आरोपों के साए में घुटता एक बेगुनाह
थाना सुभाषनगर क्षेत्र की रामाश्रम कॉलोनी का रहने वाला लखनपाल (30) अपने परिवार का सहारा था। 19 मार्च को उसके पड़ोस में रहने वाले एक युवक ने उस पर छेड़छाड़ का आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज करा दिया। इसके बाद पुलिस ने उसे लगातार परेशान करना शुरू कर दिया। हर रोज पूछताछ, हर रोज अपमान—लखनपाल इस जिल्लत को सह नहीं सका।
परिवार की पुकार, जो अनसुनी रह गई
लखनपाल के भाई सुधीर पाल ने रोते हुए बताया, "मेरा भाई निर्दोष था, उसे झूठे केस में फंसा दिया गया। पुलिस बार-बार उसे बुलाकर प्रताड़ित कर रही थी। वह कहता था कि मैं बेगुनाह हूं, लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं था।"
जब इंसाफ की लड़ाई में हार गई ज़िंदगी
बुधवार की रात जब सब सो रहे थे, तब लखनपाल ने रस्सी का फंदा बनाया और अपनी जिंदगी खत्म कर ली। सुबह जब परिवार वालों ने उसे देखा, तो पूरे घर में चीख-पुकार मच गई। इंसाफ मांगने वाले हाथ अब अपने ही बेटे, भाई और पति की लाश पर रो रहे थे। मरने से पहले उसने एक सुसाइड नोट भी लिखा था।की वह बेगुनाह है।इसे परेशान किया जा रहा है।जिस कारण वह अपना जीवन खत्म करने जा रहा है।
पुलिस की सफाई, लेकिन क्या यह पर्याप्त है?
सीओ सेकेंड संदीप सिंह का कहना है कि मामले की जांच की जा रही है और परिवार को न्याय दिलाने की पूरी कोशिश की जाएगी। लेकिन सवाल यह है—जो जान चली गई, उसे कौन लौटाएगा? क्या अब भी समाज में किसी निर्दोष को जीने के लिए सबूत देना होगा?
एक आखिरी सवाल...
लखनपाल तो चला गया, लेकिन उसकी आत्महत्या कई सवाल छोड़ गई—क्या किसी भी निर्दोष को ऐसे ही मरने के लिए मजबूर होना पड़ेगा? क्या झूठे आरोपों की आड़ में किसी की जिंदगी छीन लेना इतना आसान है? और सबसे बड़ा सवाल—क्या लखनपाल को न्याय मिलेगा।
एक टिप्पणी भेजें