मजदूर दिवस पर मजदूरों की रोटी छीनी: बरेली कॉलेज ने 9 सफाई कर्मचारियों को हटाया
बरेली। जब पूरा देश मजदूर दिवस पर श्रमिकों के सम्मान और उनके अधिकारों की बात कर रहा था, बरेली कॉलेज ने उसी दिन 9 सफाई कर्मचारियों की रोजी-रोटी छीनकर एक शर्मनाक मिसाल पेश की। कॉलेज प्रशासन ने मस्टर्ड रोल पर कार्यरत इन कर्मचारियों को बिना किसी पूर्व सूचना के नौकरी से निकाल दिया, जिन्होंने 8 से 10 साल तक मेहनत और निष्ठा से अपनी सेवाएं दी थीं। इस कार्रवाई ने न केवल इन मजदूरों के परिवारों को संकट में डाल दिया, बल्कि कॉलेज प्रशासन की संवेदनहीनता और नीतियों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए।
कौन हैं ये कर्मचारी?
हटाए गए कर्मचारियों के नाम हैं: संजीव कुमार, संदीप कुमार, राजू, रघुवीर, आलोक, अरविंद, नितिन, दिलीप और मुकेश। ये सभी कर्मचारी कॉलेज में मस्टर्ड रोल पर तैनात थे और पिछले एक दशक से सफाई कार्य में लगे हुए थे। इनका मानदेय मात्र 6000 रुपये प्रति माह था, जिसमें वे अपने परिवार का गुजारा चलाते थे।
क्यों और कैसे हुई यह कार्रवाई?
कॉलेज प्रशासन ने इन कर्मचारियों को साफ शब्दों में कह दिया कि अब उनकी जरूरत नहीं है, क्योंकि सफाई का जिम्मा एक **निजी एजेंसी** को सौंप दिया गया है। हैरानी की बात यह है कि निजी एजेंसी को प्रति कर्मचारी 12,000 रुपये प्रति माह का भुगतान किया जा रहा है, जो कि पुराने कर्मचारियों के वेतन से दोगुना है। मस्टर्ड रोल पर कुल 22 कर्मचारी थे, जिनमें 12 सफाईकर्मी थे। इनमें से 9 को अचानक हटा दिया गया।
यह कार्रवाई कॉलेज के सचिव देवमूर्ति के आदेश पर हुई, जिसकी पुष्टि प्राचार्य प्रो. ओ.पी. राय ने की। प्रशासन का यह कदम न केवल मजदूर विरोधी है, बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि क्या निजीकरण के नाम पर वफादार कर्मचारियों की बलि देना उचित है?
सवाल जो गूंज रहे हैं
1. क्या वर्षों से मेहनत करने वाले कर्मचारियों को बिना नोटिस हटाना कानूनी और नैतिक रूप से सही है?
2. मजदूर दिवस जैसे प्रतीकात्मक दिन पर यह कार्रवाई क्या प्रशासन की संवेदनहीनता को नहीं दर्शाती?
3. जब पुराने कर्मचारी आधे खर्चे पर काम कर रहे थे, तो निजी एजेंसी को दोगुना भुगतान क्यों?
4. क्या यह कदम कॉलेज प्रशासन और निजी एजेंसी के बीच किसी गहरी सांठगांठ का संकेत तो नहीं?
कर्मचारियों का दर्द: "हमने क्या गलती की?"
हटाए गए कर्मचारी सदमे और निराशा में हैं। संजीव कुमार, जिन्होंने 10 साल तक कॉलेज की साफ-सफाई की, कहते हैं, हमने दिन-रात मेहनत की, कभी शिकायत नहीं की। फिर भी हमें इस तरह सड़क पर ला दिया गया। अब हमारे बच्चे क्या खाएंगे? वहीं, मुकेश ने बताया कि उन्हें न तो कोई नोटिस दिया गया और न ही कोई वैकल्पिक व्यवस्था की गई। इन कर्मचारियों के परिवार अब आर्थिक संकट के कगार पर हैं।
मजदूर संगठनों और समाज में आक्रोश
यह मामला अब स्थानीय स्तर पर तूल पकड़ रहा है। मजदूर संगठनों ने इस कार्रवाई को शर्मनाक और मजदूर विरोधी करार दिया है। सामाजिक कार्यकर्ता संजीव मेहरोत्रा ने कहा, मजदूर दिवस पर ऐसा कदम उठाना न केवल अमानवीय है, बल्कि यह दिखाता है कि कॉलेज प्रशासन को श्रमिकों की गरिमा की कोई परवाह नहीं। कई लोग इसे निजीकरण की आड़ में मजदूरों के शोषण का उदाहरण मान रहे हैं।
क्या है आगे की राह?
हटाए गए कर्मचारी अब अपने हक के लिए लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। कुछ ने मजदूर संगठनों के साथ मिलकर कॉलेज प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन की योजना बनाई है। साथ ही, वे इस मामले को श्रम विभाग और न्यायालय तक ले जाने पर विचार कर रहे हैं। कर्मचारियों की मांग है कि उनकी नौकरी बहाल की जाए या कम से कम उन्हें उचित मुआवजा और वैकल्पिक रोजगार दिया जाए।
यह एक बड़ा मामला है
बरेली कॉलेज का यह कदम न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय बन सकता है। यह घटना निजीकरण, मजदूर अधिकारों, और संस्थानों की जवाबदेही जैसे मुद्दों पर गंभीर बहस छेड़ने की क्षमता रखती है। समाज के हर वर्ग से अपील है कि इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई जाए, ताकि इन मजदूरों को उनका हक मिल सके।
एक टिप्पणी भेजें