Bareilly: परिवहन निगम के दोषी अधिकारी और कर्मचारियों पर नहीं हुई कार्रवाई, फर्जीवाड़े की आरोपी फर्म को फिर दिया टेंडर
बरेली। उत्तर प्रदेश परिवहन निगम के रूहेलखंड डिपो में बड़े भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है, वैसे तो रूहेलखंड डिपो पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे है, और जिम्मेदारों ने जांच के आदेश भी दिये, लेकिन आज तक जांच की आंच उन आरोपी अफ़सरों तक नहीं पहुंची। जिन पर जांच की गाज गिरनी चाहिये, वर्तमान मे रूहेलखंड डिपो की एक नई कारगुजारी सामने आयी है।
डिपो ने अपने मानकों को धता बताते अकार्यशील मूल्य पर टेंडर स्वीकृत कर दिया, आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश परिवहन निगम ने सेवा प्रबंधक कार्यालय ने दस जनवरी को भसीन इंटरप्राइजेज नामक फॉर्म को ट्रायल अनुबंध के तहत पीलीभीत डिपो कार्यशाला व क्षेत्रीय कार्यशाला बरेली का अकार्यशील मूल्य पर टेंडर दे दिया। जबकि भशीन इंटरप्राइजेज के द्वारा कार्य विवरण की जो मूल्य सूची टेंडर में दी है। उसके रेट देखने के बाद आपकी हंसी रुक नहीं पाएगी। जबकि टेंडर की नियमावली में स्पष्ट किया गया है कि अकार्यशील मूल्य टेंडर को निरस्त किया जा सकता है।
पहले भी सामने आ चुका है बिलों में फर्जीवाड़ा
परिवार निगम की बसों की मरम्मत के नाम पर बिलों के फर्जी वाले का मामला पहले भी प्रकाश में आ चुका है। कार्यशाला में बसों की मरम्मत के कार्य के बिना ही तमाम फर्जी बिल बनाकर लाखों रुपए के सरकारी पैसे की बंदरबांट की जा चुकी है। जिसके चलते मैसर्स ममता इंटरप्राइजेज और मैसर्स भशीन इंटरप्राइजेज का कार्य आदेश निरस्त किया गया था। उसके बावजूद इन फार्मो को ब्लैक लिस्टेड नहीं किया गया। ट्रायल अनुबंध के नाम पर दोबारा इन्हें काम दे दिया गया। जबकि फर्जीवाड़ा खुलने पर दोनों फार्मो के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराया जाना चाहिए था और सरकारी पैसे की रिकवरी भी इन फार्मो से होनी चाहिए थी। लेकिन संबंधित अफसर की कृपा और दया दृष्टि के चलते इन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। जबकि उच्च अधिकारियों की जांच में दोनों फर्मों दोषी पाई गई थी।
जांच में दोषी पाए गए अधिकारी और कर्मचारियों पर भी नहीं हुई कार्रवाई
बिलों के फर्जीवाड़े के मामले की जांच में दोषी पाए गए अधिकारियों और कर्मचारियों पर आज तक कोई कार्रवाई सामने नहीं आई। जबकि जांच के दौरान कार्यों की दरों व धनराशि के सत्यापन के लिए कई अधिकारी और कर्मचारी जांच के दौरान दोषी पाए गए थे। लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। अगर विभागीय सूत्रों की माने तो दोषी अफसर का विभाग में बड़ा रसूख है जिसके चलते उन पर कार्रवाई होना असंभव सा प्रतीत होता है।
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