500 रुपये रिश्वत के बदले 5 साल की सजा, बेसिक शिक्षा विभाग के लिपिक को कोर्ट ने सुनाई कठोर सजा
बरेली। बेसिक शिक्षा विभाग में महज 500 रुपये की रिश्वत लेना एक लिपिक को बहुत भारी पड़ गया। स्पेशल जज एंटी करप्शन कोर्ट-2, कमलेश्वर पांडेय ने आरोपी लिपिक धर्मेंद्र कुमार को दोषी करार देते हुए 5 साल की कठोर कैद और 10 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार समाज के लिए एक गंभीर आघात है, और दोषी को दंडित करना न्याय के उद्देश्य की पूर्ति करेगा।
500 रुपये की रिश्वत में बर्बाद हुआ करियर
मुरादाबाद के बसंत विहार कॉलोनी निवासी धर्मेंद्र कुमार बेसिक शिक्षा विभाग में लिपिक के पद पर कार्यरत था। आरोप है कि उसने 500 रुपये की रिश्वत लेकर नियुक्ति पत्र जारी किए। इस मामले में अमरोहा के कटरा गुलाम अली निवासी अमित सिंह समेत 13 अभ्यर्थियों ने 7 जुलाई 2011 को जिला ज्योतिबा फुले नगर (अब अमरोहा) के थाना अमरोहा में प्रभारी निरीक्षक को शपथ पत्र देकर शिकायत दर्ज कराई थी।
भ्रष्टाचार की शिकायत पर शुरू हुई जांच
सरकारी वकील अवधेश शर्मा, पंकज कुमार और सौरभ तिवारी ने बताया कि धर्मेंद्र कुमार ने कुछ अभ्यर्थियों को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए नियुक्ति पत्र की प्रतियां उपलब्ध कराईं, जिसके आधार पर रामवीर सिंह और सुभाष ने सीएमओ कार्यालय से मेडिकल सर्टिफिकेट बनवाया। बाद में ये अभ्यर्थी पूर्व-तिथि के बैंक डेट में नियुक्ति पाने की कोशिश कर रहे थे।
गवाहों और सबूतों ने कराया दोष सिद्ध
अभियोजन पक्ष ने मामले में कुल 14 गवाह पेश किए, जिसमें अन्य अभ्यर्थी सोनू, गजे सिंह, प्रदीप कुमार और हितेश कुमार ने भी लिपिक पर नियुक्ति पत्र जारी करने के लिए 500-500 रुपये रिश्वत मांगने का आरोप लगाया। इस पर आरोपी लिपिक के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया।
कोर्ट का सख्त रुख – शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार अक्षम्य
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि शिक्षा विभाग में कार्यरत व्यक्ति का भ्रष्ट आचरण न केवल कानून बल्कि समाज और नैतिकता के खिलाफ है। न्यायाधीश कमलेश्वर पांडेय ने टिप्पणी करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में शिक्षक और शिक्षा से जुड़े व्यक्तियों का दर्जा बहुत ऊंचा माना जाता है। ऐसे पवित्र पद पर रहते हुए भ्रष्टाचार करना शिक्षा व्यवस्था को कलंकित करने जैसा है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त संदेश
इस फैसले के बाद यह साफ हो गया है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ न्यायालय किसी भी प्रकार की नरमी नहीं बरतेगा। शिक्षा विभाग में रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार में लिप्त कर्मचारियों के लिए यह एक चेतावनी है कि अगर वे गलत कार्य करेंगे, तो उन्हें सख्त सजा का सामना करना पड़ेगा।
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