जंगबंदी में ग़ज़ा के मज़लूमों को भूल गया ईरान: मौलाना शहाबुद्दीन
बरेली। ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रज़वी बरेलवी ने ईरान-इज़राइल युद्धविराम पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह चिंता का विषय है कि युद्ध की जड़ रहे ग़ज़ा के पीड़ितों का मुद्दा शांति वार्ता से पूरी तरह गायब रहा। उन्होंने कहा कि यह ईरान की एक गंभीर चूक है कि उसने ग़ज़ा के मज़लूमों के लिए कोई ठोस शर्त नहीं रखी।
मौलाना ने कहा कि जंग और खून-खराबे से कोई हल नहीं निकलता, समाधान का रास्ता हमेशा संवाद और समझौते से होकर जाता है।” उन्होंने बताया कि अमेरिका और कतर की पहल पर ईरान और इज़राइल के बीच युद्धविराम घोषित हुआ, जिससे क्षेत्र में फैली अशांति पर नियंत्रण की उम्मीद जगी है।
लेकिन उन्होंने अफसोस जताया कि ग़ज़ा के पीड़ितों को इस समझौते में पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। उन्होंने कहा, ग़ज़ा में अब तक एक लाख से ज़्यादा निर्दोष लोग मारे जा चुके हैं, शहर खंडहर में तब्दील हो चुका है, और इज़राइल की बमबारी लगातार जारी है। फिर भी ईरान ने युद्धविराम के दौरान यह शर्त नहीं रखी कि इज़राइल पहले ग़ज़ा पर हमला रोके।
मौलाना रज़वी ने जोर देकर कहा कि ईरान और इज़राइल की लड़ाई का मूल कारण ग़ज़ा ही था। ऐसे में ग़ज़ा को अनदेखा करना एक ऐतिहासिक भूल है। उन्होंने कहा कि ईरान को अपने प्रभाव का उपयोग ग़ज़ा की बमबारी रुकवाने के लिए करना चाहिए था, लेकिन उसने कूटनीतिक मोर्चे पर बड़ी चूक की है।
उन्होंने कतर के अमीर तमीम बिन हमद अल सानी, ईरानी सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनई और अन्य वैश्विक शक्तियों से अपील की कि वे संयुक्त प्रयासों से इज़राइल पर दबाव बनाएं और ग़ज़ा में हो रहे नरसंहार को तत्काल रोका जाए।
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