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UPSRTC: शिवा भसीन ने लिया टेंडर प्रक्रिया में भाग कार्यादेश बना भसीन इंटरप्राइजेज के नाम

UPSRTC: शिवा भसीन ने लिया टेंडर प्रक्रिया में भाग कार्यादेश बना भसीन इंटरप्राइजेज के नाम

सांकेतिक तस्वीर 

बरेली। उत्तर प्रदेश राज्य परिवहन निगम में भ्रष्टाचार थमने का नाम नहीं ले रहा हैं। बिना बसों की मरम्मत करे करोड़ों रुपए के फर्जी बिल बनाकर बंदरबांट करने के मामले में दोषी फर्मों और सेवा प्रबंधक पर उत्तर प्रदेश राज्य परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक ने अभी तक कार्यवाही नहीं की जिसके कारण दोषी फर्म मालिकों और सेवा प्रबंधक के काले कारनामे थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। 

आपको बता दें कि 12 दिसंबर 2024 को पीलीभीत डिपो कार्यशाला के लिए टेंडर निकाले गए थे। टेंडर प्रक्रिया में राम इंटरप्राइजेज, शिवा भसीन और श्री साईं इंटरप्राइजेज ने भाग लिया था। टेंडर प्रक्रिया के दौरान टेक्निकल बिड में राम इंटरप्राइजेज को डिसक्वालीफाई कर दिया गया था। वित्तीय बिड में शिवा भसीन और श्री साईं इंटरप्राइजेज ने भाग लिया था। जिसमें शिवा भसीन के रेट कम होने के चलते टेंडर मिल गया था। लेकिन जब कार्यादेश बनाया गया तो वह भसीन इंटरप्राइजेज के नाम बनाया था। टेंडर प्रक्रिया के दौरान बनाए गए कंपेयर चार्ट में श्री साईं इंटरप्राइजेज का जीएसटी नंबर भी दर्शाया गया है। लेकिन शिवा भसीन का जीएसटी नंबर नहीं है। जबकि नियम अनुसार टेंडर प्रक्रिया में जो फर्म भाग लेती है। उसी के नाम कार्य आदेश जारी किया जाता है। लेकिन यहां ऐसा न होकर दूसरी फर्म के नाम कार्य आदेश जारी कर दिया गया। यदि शिवा भसीन नाम की कोई फर्म ही नहीं है तो टेंडर प्रक्रिया के दौरान बनाए गए तमाम दस्तावेजों में उसका नाम क्यों लिखा गया है। इस मामले में परिवहन विभाग का कोई भी अधिकारी कुछ भी बोलने से बचता नजर आ रहा है। 

जबकि इस मामले में विभागीय जानकारो के अनुसार बताया जाता है कि भसीन इंटरप्राइजेज फर्म के स्वामी का नाम शिवा भसीन है। शिवा भसीन नाम की कोई फर्म ही नहीं हैं।

जिन फर्मों को किया जाना था ब्लैकलिस्टेड वही ले रही टेंडर प्रक्रिया में भाग

रुहेलखंड और बरेली डिपो कार्यशाला में लंबे समय से चल रहे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए जब उत्तर प्रदेश राज्य परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक ने चाबुक चलाया तो सेवा प्रबंधक को टेंडर निकलना पड़ा। बीते दिनों दोनों कार्यशालाओं के लिए टेंडर निकाला गया था। लेकिन जो फर्में लंबे समय से कार्यशाला में काम कर रही थी उन्हीं फर्मों को अब टेक्निकल बिड में डिसक्वालीफाई कर दिया गया। विभागीय सूत्रों के अनुसार पहले ही तय हो गया था कि किस फर्म को किस डिपो का ठेका दिया जाना है। लेकिन बाद में बात बिगड़ने पर दोनों फर्मों को टेक्निकल बिड में डिसक्वालिफाइड कर दिया गया और उसके बाद अगले ही दिन दोबारा टेंडर निकाल दिया गया। जबकि इसमें से एक फर्म के स्वामी की दूसरी फर्म पहले ही फर्जी बिल बनने के मामले में दोषी पाई गई है जिसको ब्लैक लिस्टेड किया जाना चाहिए। लेकिन अभी भी भ्रष्टाचार की चकाचौंध में आंखे बंद किए बैठे अधिकारी अपने कारनामों से बाज नहीं आ रहे है। 

इतने बड़े घोटाले के बाद भी आखिर एमडी ने क्यों नहीं की कार्रवाई?

परिवहन विभाग का घोटाला महीनों अखबारों की सुर्खियां बना रहा। बरेली से लेकर लखनऊ तक सेवा प्रबंधक के कारनामे चर्चा का विषय रहे। विभागीय सूत्रों के अनुसार कई बार सेवा प्रबंधक को तलब किया गया लेकिन प्रबंध निदेशक उनके ऊपर कोई कार्रवाई नहीं कर पाए। बताया जाता है कि सेवा प्रबंधक की रसूख और सत्ता में मजबूत पकड़ के चलते प्रबंध निदेशक भी उन पर कार्रवाई नहीं कर पाए। जबकि रुहेलखंड डिपो व बरेली डिपो कार्यशाला में बसों की बिना मरम्मत किए फर्जी बिल बनाने का मामला किसी से छुपा नहीं है। इस मामले में दोषी अफसर पर महज चार्जशीट की कार्रवाई कर लीपा पोती कर दी गई। इतने बड़े भ्रष्टाचार में लिप्त होने पर संबंधित अधिकारियों को निलंबित किया जाना चाहिए था। आखिर प्रबंध निदेशक की ऐसी क्या मजबूरी है जो दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं?

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