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जश्ने जम्हूरियत: बढ़ते धार्मिक तनाव के बीच एकता जरूरी, हर मदरसे में पढ़ाया जाए भारत का संविधान

जश्ने जम्हूरियत: बढ़ते धार्मिक तनाव के बीच एकता जरूरी, हर मदरसे में पढ़ाया जाए भारत का संविधान


बरेली। ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के तत्वावधान में दरगाह आला हजरत स्थित ग्रंड मुफ्ती हाउस में जश्ने जम्हूरियत के सम्बन्ध में एक गोष्टी का आयोजन किया गया। गोष्टी को सम्बोधित करते हुए मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने कहा कि आज का दिन हमारे देश के लिए जश्न का दिन है, अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के लिए बड़ी नेमत है, भारत का संविधान देश की सलमियत यानी एकता और अखंडता की गैरंटी है। इस देश की जम्हूरियत दरासल देश की आजादी का नतीजा है। मौलाना ने तमाम मुस्लिम संस्थाओं द्वारा स्थापित स्कूल व कॉलेज और खास तौर पर मदरसों के जिम्मेदारान से अपील करते हुए कहा कि हर बच्चे को भारतीय संविधान पढ़ाए ताकि नई पिडी ये जान सके कि संविधान ने अपने नागरिकों को कौन कौन से अधिकार दिए हैं, और किस तरह से हमें आजादी हासिल है। मदरसों के छात्र इस तरह की किताब नहीं पढ पाते हैं और उनको जानकारी नहीं मिल पाती है इसलिए मदरसों में संविधान का पढाया जाना बहुत जरूरी है। मौलाना हाशीम रजा खां ने कहा भारत विकास और विश्व नेतृत्व के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है, इसलिए इसकी महत्वाकांक्षाओं और घरेलू असंगतियों के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है। अयोध्या विवाद जैसे नए विवाद धार्मिक समुदायों के हितों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। यह भी उतना ही चिंताजनक है कि ये मुद्दे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेजी से ध्यान आकर्षित करते हैं और वैश्विक मंच पर भारत की छवि को नुकसान पहुंचाते हैं। हालांकि, जब अयोध्या और अन्य स्थानों के बीच तुलना की बात आती है, तो ये मुद्दे अपनी प्रकृति में अलग हैं, बहुसंख्यको के लिए आस्था का एक पुराना मामला - और अन्य धार्मिक स्थलों के बारे में आरोपों की वर्तमान लहर, जो ज्यादातर नफरत और दुश्मनी से प्रेरित है।

इस्लामीक रिसर्च सेंटर के उप निदेशक आरिफ अंसारी ने कहा कि सामाजिक घर्षण और विभाजन को कम करने के तरीके के रूप में भारत की प्राचीन संस्कृति और परंपराओं, समावेशिता और विविध मान्यताओं के सम्मान पर फिर से जोर देना चाहिए। प्रसिद्ध समाजसेवी हाजी नाजीम बेग ने कहा कि भारत की ताकत बहुलवाद को अपनाने की इसकी क्षमता में निहित है, एक ऐसा गुण जिसने देश को सदियों से संस्कृतियों और आस्थाओं के मोज़ेक के रूप में फलने-फूलने दिया है। भारत की पहचान बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक की द्विआधारी से परे है। तदनुसार, जब प्रत्येक को भारत की मिश्रित पहचान की ताकत का एहसास होगा, तो बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक की द्विआधारी गायब हो जाएगी और सभी एक हैं की फुसफुसाहट प्रबल होगी। इसके अतिरिक्त, प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भय या पूर्वाग्रह के अपने चुने हुए धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। बढ़ती विभाजनकारी चुनौती से निपटने के लिए हिंदू-मुस्लिम एकता और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। यह दृष्टिकोण विवादास्पद मुद्दों को संबोधित करने में संवाद और आपसी सम्मान के महत्व को रेखांकित करता है। 

मौलाना सूफी मूजाहिद हुसैन कादरी ने कहा कि आज के समय में संयम और सावधानी, जहां सोशल मीडिया विभाजनकारी आख्यानों को बढ़ाता है, बहुलवाद को पुनर्जीवित करने की दिशा में संयुक्त प्रयास के स्तंभ हैं, जिसके लिए भारत विश्व स्तर पर जाना जाता है। भड़काऊ बयानबाजी को खारिज किया जाना चाहिए और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के प्रति प्रतिबद्धता की पुष्टि की जानी चाहिए। 

गोष्टी में मुख्य रूप से मौलाना हसनैन रजा, कारी मुस्तकीम अहमद, रोमान अंसारी, हाफिज रजी अहमद, ज़ोहेब अंसारी, मौलाना अबसार हबीबी, सय्यद शाबान अली, अब्दुल हसीब खां, रशीद खां, सलीम खां आड़ती, आरीफ रजा, फैसल एडवोकेट आदि लोग उपस्थित रहे।

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